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ऊपर दिए फिगर-1 में एक AC sine वेव को दिखाया गया है। 0° से 180°(π) तक वेव पोसिटिव हाफ में और 180° से 360°(2π) तक वेव नेगेटिव हाफ में ट्रैवेल करती है इस विस्थापन(0 से 2π) को ही एक साईकल या चक्कर कहते हैं। और 1 सेकंड में वेव द्वारा लगाए गए टोटल चक्करों को फ्रीक्वेंसी या आवर्ती कहते हैं।
कोण मैं π का मान = 180° होता है।
जैसे- यदि ऊपर इमेज में वेव को 0 से 2π (360) जाने में 1 सेकंड का समय लगता है तो इस वेव की फ्रीक्वेंसी 1Hz हो जाएगी। क्यो की 2π तक पहुचने में 1 चक्कर पूरे होते हैं।
वेव को 0 से 4π(720)= 2Hz
वेव को 0 से 3π(1080)= 3Hz
फ्रीक्वेंसी और आवर्तकाल(Time period, T) का गुणनफल 1 होता है क्योकि दोनो एक दूसरे के रासिप्रोकैल होते हैं। या हम कह सकते हैं वेव द्वारा एक चक्कर को पूरा करने में लिया गया समय ही आवर्तकाल कहलाता है। f=1/T OR f T=1
यदि हम सिर्फ रेसिस्टिव लोड की बात करें तो वो DC सप्लाई में होता है। AC सप्लाई में रेसिस्टिव लोड के साथ-साथ इंडक्टिव और कैपेसिटिव लोड भी होता है।
XL की वैल्यू:
दोस्तो AC सप्लाई सिस्टम मैं कर्रेंट के फ्लो होने से conductor के चारों ओर मैग्नेटिक फील्ड बनता है। फ्रीक्वेंसी को बढ़ाने पर ये फील्ड तेजी से चेंज होता है क्यों की current भी तेजी से फॉरवर्ड(+ve हाफ) और बैकवर्ड(-ve half) फ्लो होती हैं। फील्ड मैं चेंज होने से एक और Current उसी conductor मैं फ्लो होने लगती है जो कि source current का oppose करती है(Len'z law)। इसी अपॉजिशन को Inductive reactance (XL) कहते हैं।
Opposite current के फ्लो होने से सोर्स करंट में, सोर्स वोल्टेज के रेस्पेक्ट मैं डिले उत्पन्न हो जाता है। यदि लाइन में लगा हुआ inductor(L) आइडियल(जीरो रेसिस्टिव और जीरो कैपसिटिव) है तो करंट, वोल्टेज से 90° पीछे हो जाती है और सिस्टम में पावर फैक्टर लौ(आइडियल pf=1) हो जाता है जिससे पावर का unbalance होता है।
Xc की वैल्यू:
कैपेसिटिव reactance, कंडक्टर के बीच फ्लो वोल्टेज में होने वाले changes का विरोध करता है। Xc फ्रीक्वेंसी के ब्यूतक्रमानुपाती होता है। अतः फ्रीक्वेंसी को बढ़ाया जाए तो Xc का मान कम हो जाता है।
AC लाइन्स में इंडक्टिव reactance की वजह से फेज शिफ्टिंग को कम करने के लिए कैपेसिटर बैंक को लाइन में ऐड किया जाता है। जिससे लोड तक रियल पावर को फ्लो करवाया जा सके जो की फेज डिफरेंस की वजह से लोड से सोर्स की तरफ होने लगता है। (रिएक्टिव पावर)
और यदि फ्रीक्वेंसी को बिल्कुल कम किया जाए तो Xc का मान बड़ जाता है।(Xc=1/ 2πfC) और लोड में जो भी लाइट्स(बल्ब, लैंप, tubelight आदि) लगी हुई होंगी हम उनको ON-OFF होते हुये देख पाएंगे। इसलिए DC सप्लाई को भी कैपेसिटर ब्लॉक कर देता है। क्यो की DC में फ्रीक्वेंसी जीरो होती है।
इसलिए लोड तक पावर लोस वैल्यू को कम करना पड़ता है। जिसके लिए प्रत्येक एलिमेंट, मटेरियल, या मशीन की स्टैण्डर्ड वैल्यू (230V-50Hz भारत)लेनी पड़ती है ताकि लाइन में रियल पावर ज्यादा से ज्यादा फ्लो हो सके। फ्रीक्वेंसी को वेरिएबल फ्रीक्वेंसी ड्राइवर(VFD) की मदद से कम या ज्यादा किया जा सकता है। कंप्यूटर्स में तो MHz(मेगा हर्ट्ज) में क्लॉक फ्रीक्वेंसी का उपयोग होता है क्यो की वहां सूचनाओं का अदान परदान नैनो सेकंड में होता है।
दोस्तो थॉमस अल्वा एडिशन ने AC सप्लाई से पहले ही DC सप्लाई अमेरिका में डिस्ट्रीब्यूट कर दी थी। जब निकोला टेस्ला ने AC सप्लाई बनाई तो पूरे सप्लाई सिस्टम को DC से AC में changeover करना अमेरिका को बहुत costaly(महंगा) लगा जिससे आज भी अमेरिका 110V-60Hz का यूसे केरत है। बहुत सारे उपकरण आजकल जो मनुफैक्टर हो रहे हैं वो 50Hz और 60 Hz दोनो में चल सकते हैं।(जैसे-मोबाइल चार्जर)
आशा करते हैं दोस्तो इस जानकारी से आप सहमत होंगे यदि इस पोस्ट मैं कोई गलती या सुधार करना हो तो आप नीचे comment box मैं बता सकते हैं।
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